श्यामल मुखर्जी गाजियाबाद। स्वच्छ गाजियाबाद की परिकल्पनाएं नगर निगम की मनमानी तथा अधिकारियों के ढुलमुल रवैए के कारण प्रतिदिन दम तोड़ती नजर आती है। शहर में जगह-जगह सडक़ों के किनारे लगे कूड़े के ढेर, बदबू का अंबार, पन्नीयों को चबाते हुए गोवंश, क्या यही है हमारा स्वच्छ गाजियाबाद?और तो और, नगर निगम के अधिकारियों की शह पर पूरे जनपद में अवैध निर्माणों का मकडज़ाल सा बिछ गया है। चाहे वह घंटाघर हो या फिर तूराबनगर रमते राम रोड हो या फिर नवयुग मार्केट, शहर का कोई भी ऐसा कोना नहीं बचा जहां अवैध कब्जे ना हो रहे हो। नालियों और खड़ंजों की तो बात ही मत पूछिए साहब, नालियां तो कब की गायब हो चुकी है और उनके ऊपर दुकान या मकान बने हुए हैं। यह सब कुछ आदरणीय मेयर साहिबा, महानगर आयुक्त नगर निगम के उच्च अधिकारियों की नाक के नीचे चल रहा है जहां जी का जंजाल बने अवैध कब्जे नगर निगम के करदाताओं को हर समय मुंह चिढ़ाते रहते हैं। मजाल है कि कोई इनके बाल भी बांका कर सके ! सबसे बड़ी बात यह है कि ऊपर की कमाई के चक्कर में नगर निगम के अधिकारी इतने मशगूल रहते हैं कि उन्हें अपने ड्यूटी के समय में भी उन्हें आम नागरिकों तथा करदाताओं की मौलिक समस्याएं भी नजर नहीं आती । जनपद के चार मुख्य द्वारों में से एक है सुभाष द्वारजिसे लोग दिल्ली गेट के नाम से भी जानते हैं। इस गेट के ऐन सामने पिछले कई दिनों से खुला पड़ा सीवर का ढक्कन आप के यहां गुजरने पर आपको मुंह चिढ़ाता नजर आएगा । यदि कोई छोटा बच्चा, जानवर अथवा कोई वयस्क आदमी भी इसमें गिर जाए तो उसकी दुर्दशा की कल्पना करके ही आपको सिहरन पैदा होगी। परंतु यह गाजियाबाद है साहब । यहां तो सब चलता है ।